जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज: भारतीय भक्ति की आध्यात्मिक धारा

लोग प्रश्न करते हैं कि हमारे भारत में भगवान् की भक्ति तो बहुत दिखाई पड़ती है, घर-घर में मन्दिर हैं और यहाँ तो मरने के बाद भी राम नाम सत्य है बोला जाता है फिर इतना अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार, पापाचार क्यों है ? इनको पता ही नहीं है भक्ति करनी किसको है? सब इन्द्रियों से भक्ति करते हैं- आँख से, कान से, रसना से, पैर से, हाथ से । निन्यानवे प्रतिशत लोग, इन्द्रियों से भक्ति करते हैं। पूजा- हाथ से, दर्शन- मन्दिर में जाकर मूर्ति के या सन्तों के आँख से, श्रवण- कान से भागवत सुन रहे हैं, रामायण सुन रहे हैं, मुख से नाम कीर्तन, गुण कीर्तन पुस्तकें पढ़ते हैं वेद मंत्र या गीता या भागवत या गुरु ग्रन्थ साहब कोई पुस्तक पाठ करते हैं रसना से, पैर से चारों धाम की मार्चिंग करते हैं। वैष्णो देवी जा रहे हैं, कहीं बद्रीनारायण जा रहे हैं ये सब नाटक करते हैं हम लोग। ये सब साधना नहीं है ये तो जैसे जीरो में गुणा करो एक करोड़ से तो भी जीरो आयेगा ऐसे ही इन्द्रियों के द्वारा जो भक्ति की जाती है भगवान् उसको लिखते ही नहीं, नोट नहीं करते वो तो व्यर्थ की है बकवास है, अनावश्यक शारीरिक श्रम है। उपासना, या भक्ति या साधना म...