Saturday, August 26, 2023

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज: भारतीय भक्ति की आध्यात्मिक धारा

kripalu ji maharaj

लोग प्रश्न करते हैं कि हमारे भारत में भगवान् की भक्ति तो बहुत दिखाई पड़ती है, घर-घर में मन्दिर हैं और यहाँ तो मरने के बाद भी राम नाम सत्य है बोला जाता है फिर इतना अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार, पापाचार क्यों है ?

इनको पता ही नहीं है भक्ति करनी किसको है? सब इन्द्रियों से भक्ति करते हैं- आँख से, कान से, रसना से, पैर से, हाथ से । निन्यानवे प्रतिशत लोग, इन्द्रियों से भक्ति करते हैं। पूजा- हाथ से, दर्शन- मन्दिर में जाकर मूर्ति के या सन्तों के आँख से, श्रवण- कान से भागवत सुन रहे हैं, रामायण सुन रहे हैं, मुख से नाम कीर्तन, गुण कीर्तन पुस्तकें पढ़ते हैं वेद मंत्र या गीता या भागवत या गुरु ग्रन्थ साहब कोई पुस्तक पाठ करते हैं रसना से, पैर से चारों धाम की मार्चिंग करते हैं। वैष्णो देवी जा रहे हैं, कहीं बद्रीनारायण जा रहे हैं ये सब नाटक करते हैं हम लोग। ये सब साधना नहीं है ये तो जैसे जीरो में गुणा करो एक करोड़ से तो भी जीरो आयेगा ऐसे ही इन्द्रियों के द्वारा जो भक्ति की जाती है भगवान् उसको लिखते ही नहीं, नोट नहीं करते वो तो व्यर्थ की है बकवास है, अनावश्यक शारीरिक श्रम है। उपासना, या भक्ति या साधना मन को करनी है।

बन्धन और मोक्ष का कारण मन ही है। हम मन को तो संसार में लगाये हुये हैं; माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, धन, प्रतिष्ठा इन सब चीज़ों में मन को लगाये हैं। तो भगवान् की उपासना कहाँ हो रही है। ये नाम कीर्तन, गुण कीर्तन, लीला कीर्तन तो बच्चों की बातें है जैसे कोई, छोटे से बच्चे को कोई पाठ पढ़ावे जबानी लेकिन तत्वज्ञान जिसको हो, थ्योरी की नॉलेज हो तो उसको पहला सबक ये याद करना है, कि मन से भक्ति करनी है। मन से। प्यार तो सब जानते हैं, पशु पक्षी भी जानते हैं, मनुष्य की कौन कहे; जैसे माँ से, बाप से, बीबी से, पति से, धन से अपने शरीर तक से आप लोग प्यार करते हैं ऐसे ही तो करना है भगवान् से। कोई नया मन नहीं लाना है, कोई नया तरीका नहीं लिखा है, शास्त्र वेद में। जगगुरु श्री कृपालु जी महाराज का चैलेन्ज है, सब वेद शास्त्र मैं जानता हूँ । कोई नई बात नहीं लिखी कहीं। जैसे प्यार संसार से करते हैं ऐसे ही भगवान् से करना है।

तो सबके दुःख में रोये और अपने दुःख में अलग रोये बस रोते रोते मर गये। भगवान् की भक्ति करने का तो प्रश्न ही नहीं आया। क्योंकि हमने किया ही नहीं मन से भक्ति  हमने तो जप किया, गुरु जी ने कहा, ऐ तेरे कान में एक मंत्र बोल रहा हूँ, इसकी एक माला जप लिया कर। इन बाबाओं से पूछो कि तुम क्या दे रहे हो हमको ? अरे पूछो, हिम्मत करो, अपने गुरु से पूछो। तुमने क्या दिया हमको ? मंत्र । क्या है इस मंत्र में ? क्या मतलब है इस मंत्र का ? हे भगवान्! आपको नमस्कार है, हे भगवान्! आपकी शरण में हैं। तो ये जो आप मंत्र दे रहे हैं इसको हम हिन्दी में बोलें, पंजाबी में बोलें, बंगाली में बोलें भगवान् खुश नहीं होंगे ? ये राम और श्याम जो नाम भगवान् के हम सुनते हैं इससे वो बड़ा है ? हाँ, हाँ बड़ा है। कैसे बड़ा है, क्यों बड़ा है ? वो हमारे गुरु परम्परा से आया है। अच्छा ! तो उसमें विशेष शक्ति होगी ? हाँ, अब समझे तुम। अच्छा कि जब वो मंत्र आपने कान में दिया तो हमारे ऊपर तो बड़ा प्रभाव तो गुरु जी, ये बताओ पड़ना चाहिये, अरे मामूली से इलैक्ट्रिक सिटी को हम छू लेते हैं तो हालत खराब हो जाती है और आपने कान में मंत्र दिया तो उसका असर होना चाहिये हमारे ऊपर वो तो हुआ नहीं। हम तो और आसक्त होते जा रहे हैं संसार में। पहले अकेले थे, अब एक बीबी आ गई, अब एक बच्चे दो बच्चे हो गये, तो और अटैचमेन्ट हमारा बढ़ रहा है। आपका मंत्र कहाँ गया ? तो तुम्हारा बर्तन खराब है। तो हमारा पात्र खराब है, तो गुरुजी आपका दिमाग खराब है जो आपने दिया मंत्र। पहले बर्तन बनाते। अरे हम ए, बी, सी, डी नहीं जानते और हमको लॉ क्लास में दाखिला दे दिया। क्या पढ़ेंगे हम ? आपने धोखा दिया! कोई पूछने वाला नहीं, सब डरते हैं अपने-अपने गुरु से । और गुरु जी ने कहा है- चुप बोलना नहीं, बस पूजा किया करना हमारी।

ये अन्त:करण शुद्धि के बाद, गुरु देता है मंत्र। और मंत्र में शक्ति देता है और शक्ति देने से तत्काल भगवत्प्राप्ति, माया निवृत्ति सब काम खतम। ये शास्त्र वेद का सिद्धान्त है। एक बहुत बड़े पादरी ने हमसे पूछा कि आपके कितने लाख शिष्य हैं? हमने कहा एक भी नहीं । आप जगद्गुरु हैं, ओरिजनल जगद्गुरु । हाँ हाँ, वो तो बना दिया ओरिजनल जगद्गुरु, काशी विद्वत् परिषत् ने लेकिन हम गलत काम नहीं करते। किसको शिष्य बनावें, कोई पात्र मिले तब न। लखपति, करोड़पति को बनावे; कलैक्टर, कमिश्नर, गवर्नर को बनावें; किस को बनावें ? पहले पात्र बनाओ, तब कोई दिव्य सामान उसमें दिया जा सकता है।

तो हम लोगों के गुरुओं ने सब बिगाड़ दिया और कह दिया- ये पाठ करो, ऐसे पूजा कर लो, ऐसे जप कर लो, बस हो जायेगा तुम्हारा काम। इससे काम नहीं बनेगा, आप लोग नोट कर लो। आँसू बहाकर भगवान् से उनका दर्शन, उनका प्रेम माँगना होगा। ये जो कीर्तन करते हैं आप लोग न 'हरे राम हरे राम,' 'हे हरि ! हे राम !' ये रोकर बोलो, रोकर पुकारो उनको और कुछ माँगो मत। एक बड़ी बीमारी हम लोगों में, ये है जो भगवान् की भक्ति करते भी हैं थोड़ी बहुत, वो संसारी कामना लेकर करते हैं, हमारा ये काम हो जाय, हमारा ये काम बन जाय संसारी। इसका मतलब तुम समझते हो संसार में सुख है फिर क्यों बोलते हो, राम नाम सत्य है ? संसार में सुख मानते हो तो भगवान् के पास क्यों जा रहे हो? संसार की भक्ति करो। भगवान् में सुख है अगर मानते हो तो भगवान् की भक्ति करो। माँगो संसार और भगवान् के पास जा के। तो क्यों जी, संसार में कोई मिठाई की दुकान पर चप्पल तो नहीं माँगता- ऐ! एक जोड़ी चप्पल दे दे। और संसार में तुमको सुख समझ में आ रहा है तो संसार के पास जाओ। तो हमने समझा ही नहीं अभी क ख ग घ कि मन को ही भक्ति करनी है। एक बार राम मत कहो श्याम मत कहो, राधे मत कहो, लेकिन मन का अटैचमेन्ट भगवान् में कर दो। भगवत्प्राप्ति हो जायेगी। और अगर मन का अटैचमेन्ट नहीं किया, तो इन्द्रियों से- बहुजन्म करे यदि श्रवण कीर्तन तथू ना पाय कृष्णपदे प्रेमधन । गौरांग महाप्रभु ने कहा, हजारों जन्म तुम राम राम राम राम करते रहो कुछ नहीं मिलेगा। करके देख लो संसार का अटैचमेन्ट जाता है क्या इससे। ये तो जबान से बोल रहे हो, मन तो संसार में है।

मन से स्मरण मेरा हो और इन्द्रियों से वर्क संसार का हो। हम उल्टा करते हैं इसका। मन का अटैचमेन्ट संसार में हो और इन्द्रियों का वर्क भगवान् का हो, क्या मिलेगा ? अरे दस साल हो गये करते करते बीस साल, अरे दस जन्म हो जायें क्या मिलेगा ? तुम साधना ही उल्टी कर रहे हो। भगवान् के द्वारा ही अन्तःकरण शुद्ध होगा। ये मन जब भगवान् में लगेगा तब अन्तःकरण शुद्ध होगा और तब ये दैवी सम्पत्तियाँ आयेंगी- दया करना, परोपकार जो कुछ भी ये दैवी सम्पत्तियाँ है, जिसको आप लोग अच्छा आचरण कहते हैं, ये तब आयेगा जब आपका अन्तःकरण शुद्ध होगा और इसके शुद्ध करने के लिये भगवान् का रूपध्यान करके आँसू बहाना पड़ेगा। रूपध्यान, आँसू, ये दो शब्द याद रखो। भगवान् का रूपध्यान! क्योंजी ? भगवान् को देखा नहीं। अरे! बड़ा अच्छा है नहीं देखा, अगर देखोगे तो नास्तिक हो जाओगे क्योंकि भगवान् का असली रूप तो तुम देख नहीं सकते।

आपकी आँख प्राकृत है, मटीरियल है, पंचमहाभूत की है और भगवान् दिव्य हैं, उनका शरीर दिव्य है। इसलिये पहले बर्तन बनाओ, अन्तःकरण को, इन्द्रियों को दिव्य बनाओ तब भगवान् का दर्शन कर सकोगे। तो भगवान् का पहले मन से रूप बनाओ या कोई फोटो रख लो, उसकी हैल्प ले लो, या मूर्ति रख लो या मन से बनाओ। सबसे अच्छा है मन से। क्यों ? इसलिये, जैसे मान लो तुम्हारी इच्छा है भगवान् को हीरे के हार पहनाते अगर हमारे पास पैसा होता तो, अब हीरे का हार पहनाने के लिये दस अरब रुपया चाहिये, वो कहाँ से आयेगा हमारे पास दस लाख भी नहीं। हाँ, आँख बन्द करो और श्यामसुन्दर को खड़ा करो और ये पहना दिया हीरा। जो मन में आये शृंगार करो भगवान् का। भगवान् ये नहीं कहते ऐसा ही करो। तुम जैसा भी करो उसको हम असली मान लेगें, ये भगवान् का वाक्य है।

तो इस प्रकार रूपध्यान करो फिर नाम लो। पहले रूपध्यान फिर नाम यानी पहले मन फिर इन्द्रियाँ । नाम भी इन्द्रियों से लो, ठीक है, है तो काम में लो उसको भी। कीर्त्तन करो लेकिन स्मरण सबसे पहले, क्योंकि मन को ही तो ठीक करना है पाप तो मन में है; आँख में, कान में, पाप नहीं रहा करता । अन्तःकरण को शुद्ध करना है, मन को शुद्ध करना है। इसलिये मन से रूपध्यान करते हुये रोकर, उनको पुकारना है प्लस दूसरी साधना जहाँ भी जाओ, कहीं भी जाओ हमारे साथ, हमारे हृदय में बैठे हैं ये रियलाइज़ करो। रियलाइज़ करो। एक मिनिट को नहीं, सदा हमारे साथ हमारे अन्दर बैठे हैं।

देखो ! एक अरबपति अकड़ के क्यों चलता है। बैंक में एक अरब है जेब में तो नहीं है। अरे, तो उससे क्या हुआ बैंक में तो है। हाँ, तो हमारे हृदय में श्यामसुन्दर बैठे हैं, ये फीलिंग सदा होनी चाहिये जैसे अपनी फीलिंग आपको होती है, मैं हूँ, मैं हूँ, ऐसे ही मेरा बाप श्यामसुन्दर, मेरे प्राणबल्लभ श्यामसुन्दर, अन्दर बैठे हैं, फैक्ट है। 


कोई पाप करते हैं जब आप तो पहले क्या करते हैं? प्लानिंग, पाप करने की बात सोचते हैं। तो सोचते समय ये क्यों नहीं सोचते कि वो नोट हो रहा होगा अन्दर, वो बैठा हुआ है नोट करता है। आइडियाज़, वर्क नहीं। वर्क का कोई मूल्य नहीं है। भगवान् कहते हैं करोड़ों मर्डर कर अर्जुन हम नोट नहीं करेंगे। तेरा मन क्या कर रहा है ये नोट करेंगे। हनुमान ने करोड़ों ब्रह्महत्या की, लंका में राम ने नोट नहीं किया, क्योंकि उसका मन राम के पास था। सब कुछ निर्भर करता है मन पर।

तो रूपध्यान करना है और हर जगह हमेशा भगवान् को अपने साथ, महसूस करना है। पहले एक-एक घण्टे में करो, हाँ अन्दर बैठे हैं। हाँ बैठे हैं। बोलो मत, फील करना है, अन्दर से महसूस करो। फिर एक घण्टे से आधा घण्टा, एक मिनिट, एक सैकेण्ड पर आ जाओ। अन्दर बैठे हैं, अन्दर बैठे हैं। हर समय आप नशे में रहेंगे और वो अनन्त कोटि ब्रह्माण्डनायक सर्वशक्तिमान् भगवान् अन्दर बैठे हैं, मेरे बराबर कौन है, ऐसी फीलिंग होगी आपको। कोई पाप करने जब आप चलेंगे, तो धक् होगा अन्दर, अरे! वो नोट कर लेंगे, फिर कृपा कैसे करेंगे वो, कि हमसे चोरी करता है, हम अन्दर बैठे हैं और तू पाप की बात सोच रहा है। तो हम पाप नहीं कर सकेंगे।


तो हर समय भगवान् को सर्वत्र महसूस करना एक साधना ये और एक एकान्त में जो समय मिले, बैठकर भगवान् का रूपध्यान करके और रोकर उनका नाम गाओ, गुण गाओ, लीला गाओ सब ठीक इससे अन्त:करण शुद्ध होगा जब पूर्ण शुद्ध हो जायेगा, पूर्ण वैराग्य हो जायेगा संसार से ।

बाप मर गया, माँ मर गयी, बेटा मर गया, कोई मर गया, हाँ कोई फीलिंग नहीं। एक हजार गाली दिया, पड़ोसी ने कोई फीलिंग नहीं, जब इस स्टेज पर आप आ जायेंगे तब फिर गुरु आपको स्वरूप शक्ति देगा। तब देगा ये । जैसे- आप अपने कमरे में, मकान में सब फिटिंगकर लीजिये रॉड लगा दीजिये, पंखे लगा दीजिये अब लेकिन कुछ हुआ नहीं। अरे! तो क्या होता पॉवर हाउस ने पॉवर तो दिया ही नहीं । अब पॉवर हाउस से तार जोड़ दिया मैकेनिक ने आ के। अहा ! लाइट भी हो गई, पंखे भी चल गये। तो ऐसे ही जब गुरु कान फूँकेगा, मंत्र देगा, वो चाहे छू ले, चाहे चिपटा ले, चाहे कान में दे तुरन्त माया गई, दिव्यानन्द मिला सदा को, भगवद्दर्शन हुआ सदा को। गुरु जी ने खाली एक अक्षर बोल दिया और वो गुरु हो गया, हम उनके चरण धोके पीयें, वो चाहे राक्षस हो, घोर पाप कर रहे हों। अरे उन्होंने सबसे पहले हमको धोखा दिया कि तुम चेले हो गये हम गुरु हो गये। क्यों? ये जो हमने कह दिया रामाय नमः, कृष्णाय नमः। ये रामाय नमः, कृष्णाय नमः तो सब जगह लिखा है। गीता, भागवत, पुराण सर्वत्र हम पढ़ लेंगे तुमने क्या दिया हमको ? अगर तुम हमको संसार का वैराग्य देते, भगवान् का अनुराग देते. तो हम समझते कि तुमने कुछ दिया। सब धोखा है इस धोखे से बचिये, और मन से भक्ति कीजिये, तो मन शुद्ध होगा तो अपराध नहीं होगा, तो फिर ये बदनामी नहीं होगी कि हमारे देश में इतनी भक्ति दिख रही है, फिर भी इतना भ्रष्टाचार क्यों है।


निष्कर्ष:
इस प्रकार, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने भारतीय भक्ति की आध्यात्मिक धारा के महत्व को समझाया है। उन्होंने बताया है कि हमारे भारत में भगवान् की भक्ति तो होती है, लेकिन उसमें अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार के कारण हमें दुख का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि भक्ति करने के लिए मन को शुद्ध करना आवश्यक है और इन्द्रियों के द्वारा भक्ति करना व्यर्थ है। उन्होंने भक्ति के महत्व को समझाने के लिए रूपध्यान और नाम स्मरण की महत्वपूर्णता बताई है। उनके अनुसार, भगवान् के साथ सदा महसूसी बनाए रखना है ताकि हम पाप करने से बच सकें और अपने अन्तःकरण को शुद्ध कर सकें। भगवान् को समर्पित और अनुरागी भाव से भक्ति करना ही असली भक्ति है।


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